।। ॐ श्री वेदपुरुषाय नमः।।
गौड़ वैदिक गुरुकुलम्
गौड़ सिटी–२ ग्रेटर नोएडा वेस्ट उत्तर प्रदेश
1. गौड़ वैदिक गुरुकुलम् की स्थापना:–
गौड़ सिटी–२ के श्री राधा कृष्ण मंदिर की स्थापना 15 जून 2018 को हर्षोल्लास के साथ की गई। प्रतिस्थापित देवाधिदेव महादेव एवं समस्त देवों की स्थापना के साथ ही उनका आशीष व मंगलादेश वैदिक पाठशाला की स्थापना के लिए हो चुका था,क्योंकि शास्त्रों का कथन है–
श्लोक:
वेदः शिवः शिवो वेदो वेदाध्यायी सदाशिवः। तस्मात् सर्वः प्रयत्नेन वेदमेव सदापठेत्।।
वैदिक गुरुकुलम् की सन्स्थापना के मानसिक– प्रकल्प को धीरे धीरे मूर्त रूप में साकार होने में 4 वर्ष लगे,
और 29 जनवरी 2022 को गौड़ वैदिक गुरुकुलम् की स्थापना का समारोह विविध सामाजिक प्रकल्पों की प्रणेता धर्म व समाज सेविका अध्यक्षा श्री मति मंजू गौड़ एवं श्रीमान् मनोज गौड़ की गरिमामई उपस्थिति में संपन्न हुआ।
हिंदू धर्म में वेदों का महत्व :–
विश्व साहित्य एवं संस्कृति के इतिहास में वेदों का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है।इनकी दृढ़ आधारशिला पर भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का विशाल एवं भव्य भवन प्रतिष्ठित है।यह संसार के प्राचीनतम एवं विशाल ग्रंथ हैं, प्राचीन भारतीय ऋषियों को जो दिव्य अनुभूति हुई वही वेद मंत्रों के रूप में अभिव्यक्त हुई है।इन मंत्रो में विभिन्न देवताओं को स्तुतियां ,ज्ञान , कर्मकाण्ड ,दर्शन, आयुर्वेद ,वास्तुकला आदि सभी विद्याएं समाविष्ट हैं।भारतीय विचारधारा पर वेदों का व्यापक प्रभाव है। सभी भारतीय दर्शन वेदों से अनुप्राणित हैं। वेदों से उच्च कोटि की नैतिक शिक्षा तो मिलती ही है, इनमें श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों के दर्शन होते हैं ।आधुनिक विज्ञान के प्राचीनतम बीज भी वेदों में उपलब्ध होते हैं!
वेद क्या हैं :–
वेद शब्द "विद्" धातु से निस्पन्न है, जिसका अर्थ है, ज्ञान ,विचार, सत्ता एवं लाभ। ज्ञान का ही दूसरा नाम वेद है। यह वह ज्ञान है जो, ब्रह्मांड के विषय में भी सभी विचारों का स्रोत है, जो सदा अस्तित्व में रहता है, और जो सभी कालों में मनुष्य को उपयोगी वस्तुओं की प्राप्ति और उसके उपयोग के उपाय को बताता है। मनुष्य के जीवन को शुभसंस्कारों द्वारा सुसज्जित एवं अनुशासित करने के लिए ऋषियों द्वारा अनुभूत ज्ञान वेदों में सुरक्षित रखा गया है।जीवन के लिए आवश्यक ज्ञान वेदों से प्राप्त है!
वेदों का आविर्भाव:–
वेद ऋषियों द्वारा दृश्य मंत्रों का संग्रह है। यह बहुत विशाल है।वेद चार हैं ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद। प्राचीन भारत की परंपरा के अनुसार चारों वेद परमेश्वर से प्रकट हुए ,किंतु आधुनिक युग में साहित्य का इतिहास लिखने वाले विद्वानों ने वेद के आविर्भाव के काल के विषय में पर्याप्त छानबीन की है।अधिकांश देशी एवं विदेशी विद्वानों ने एक मत से कहा है ,कि वेद अति प्राचीन ग्रंथ हैं किंतु इनका रचना काल सर्वसम्मति से निर्धारित नहीं हुआ है।इस प्रसंग में विभिन्न विदेशी विद्वानों ने अपने-अपने मत प्रकट किए हैं, प्राय: उनकी दृष्टि में वेदों का आविर्भाव काल ईसा पूर्व 3000 से 1000 वर्ष तक माना गया है ,लोकमान्य तिलक ने वेदों को ईसा से 6000 वर्ष पूर्व की रचना माना है ,फिर भी यह तथ्य निर्विवाद है कि ,ऋग्वेद संपूर्ण विश्व साहित्य का सबसे प्राचीनतम ग्रंथ है।
वेदों की विषय वस्तु:–
वेदों में मंत्रो का संकलन है।कुछ मंत्र छंदोबध्द एवं कुछ गद्यात्मक हैं। छन्दोबद्ध मंत्रों को ऋक् कहते हैं। ऋक् को ऋचा भी कहते हैं।,इसके द्वारा देवताओं की अर्चना की जाती है। जिस वेद में ऋचाओं का संकलन है, उसे ऋग्वेद कहा जाता है। यही मंत्र जब ज्ञेय होते हैं, तब उन्हें साम कहा जाता है। सामों के संकलन को सामवेद कहते हैं।गद्य प्रधान वेद को यजुर्वेद कहते हैं, जो यज्ञों के लिए प्रयुक्त होता है।स्तवन, गायन और यजन इन तीन प्रमुख विषयों के कारण क्रमशः ऋग्वेद, सामवेद , यजुर्वेद का विभाजन किया गया है। इन्हें संयुक्त रूप से वेदत्रयी कहा जाता है। जिन मंत्रों का संग्रह अथर्वा ऋषि ने किया वे अथर्ववेद के नाम से विख्यात है।अथर्ववेद में विभिन्न विषय वर्णित हैं ,जिनमें लोकाचार ,भैषज्य आदि लोक विधाओं का भी संग्रह है!
ऋग्वेद–
प्राचीन तथा विषय वस्तुकी व्यापकता के कारण ऋग्वेद को सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। भाषा तथा भाव की दृष्टि से भी इसका महत्व अधिक है। वैदिक साहित्य में यह सर्वाधिक विशाल है!
ऋग्वेद के विभाग –
ऋग्वेद का विभाजन दो क्रमों में किया गया है।
१.मंडल क्रम
२.अष्टक क्रम
1.मंडल क्रम – यह क्रम अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह ऐतिहासिक तथा वैज्ञानिक है।ऋग्वेद 10 मंडलों में विभक्त है।प्रत्येक मंडल में कई अनुवाक प्रत्येक अनुवाक में कई सूक्त और प्रत्येक सूक्त में कई ऋचाएं होती हैं।
2. अष्टक क्रम– इस क्रम विभाजन के अनुसार समस्त ऋग्वेद संहिता को 8 अष्टकों में बांटा गया है, प्रत्येक अष्टक में 8 अध्याय हैं, और पूरा ऋग्वेद 64 अध्यायों का ग्रंथ है। ऋग्वेद मंत्रों की वह विशाल राशि है, जिसमें अभीष्ट प्राप्ति के लिए बडे ही सुंदर तथा भावाभिव्यंजक शब्दों में अनेक देवताओं की स्तुतियाँ है!
"संगच्छध्वं संवद्ध्वम्" " अक्षैर्मा दिव्याः कृषिमित्कृषस्व०"
इत्यादि सूक्तियां एकता क्षमता दुर्व्यसन की निष्क्रियता एवं कर्तव्य निष्ठा का उपदेश करती हैं। इसी प्रकार की जीवन उपयोगी अनेक उदात्त भावनाएं ऋग्वेद में सर्वत्र उपलब्ध !
यजुर्वेद :–
यजुर्वेद यज्ञ कर्म के लिए उपयोगी ग्रंथ है। यज्ञात्मक भाग को यजुः कहा जाता है। यजुस की प्रधानता के कारण इसे यजुर्वेद कहा जाता है। इस वेद की दो परंपराएं हैं, जो " शुक्ल" और " कृष्ण" नाम से जानी जाती हैं! इस वेद के शुक्लत्व और कृष्णत्व का भेद उसके स्वरूप के ऊपर आधारित है।अर्थात शुक्ल– यजुर्वेद में मंत्र–मात्र संकलित हैं, किंतु कृष्ण यजुर्वेद में मंत्रों के साथ- साथ ब्राह्मण अंश भी सम्मिलित हैं। मंत्र तथा ब्राह्मण के मिश्रण के कारण इसे कृष्ण यजुर्वेद कहा जाता है। तथा मंत्रों के विरुद्ध एवं अनिश्चित रहने के कारण स्वच्छ होने से शुक्ल यजुर्वेद माना जाता है। कृष्ण यजुर्वेद की प्रधान शाखा तैत्तिरीय तथा शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिन है। शुक्ल यजुर्वेद संहिता में 40 अध्याय 303 अनुवाक तथा 1975 मंत्र है!
कृष्ण यजुर्वेद की तैत्तिरीय संहिता 7 कांड 44 प्रपाठक तथा 631 अनुवाकों में विभक्त है। इसकी दूसरी प्रचलित शाखा मैत्रायणी संहिता है।जो चार कांडों और 14 प्रपाठकों में विभक्त है इस वेद की तीसरी शाखा काठक संहिता है, जिसमें 5 खंड 40 स्थानक 13 अनुवाचन और 843 अनुवाक हैं!
सामवेद –
वैदिक संहिताओं में सामवेद का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है।गीता में श्री कृष्ण ने कहा है, कि"वेदानां सामवेदोस्मि "ऋग्वेद के गाए जाने वाले मंत्र साम कहलाते हैं। ऋच् अर्थात् ऋचा पर ही साम आश्रित है। उद्गाता नामक ऋत्विक् यज्ञ के अवसर पर देवता के स्तुति परक इन मंत्रों को विविध स्वरों में गाते हैं। सामवेद के दो प्रधान भाग हैं। आर्चिक तथा गान ऋक् समूह को आर्चिक कहते हैं।इसके भी दो भाग हैं। पूर्व आर्चिक और उत्तरार्चिक पूर्व आर्चिक में छह प्रपाठक ( अध्याय) हैं।प्रत्येक प्रपाठक में दो अर्द्ध प्रपाठक या खंड हैं।प्रत्येक खंड में एकदशति है। जिसमें प्रायः 10 ऋचाएं होती हैं। उत्तरार्चिक में 9 प्रपाठक हैं। इसके पहले पांच प्रपाठकों में दो भाग हैं। जो अर्द्ध प्रपाठक कहे जाते हैं। अंतिम 4 प्रपाठकों (6 से 9 ) में तीन तीन अर्द्ध प्रपाठक अध्याय हैं। दोनों आर्चिकों की सम्मिलित मंत्र संख्या 1875 है। ऋग्वेद की 1504 ऋचाएं सामवेद में उद्धृत हैं। सामान्यतया 75 मंत्र सामवेद के अपने हैं। सामवेद का दूसरा भाग है, गान ऋग्वेद के विभिन्न मंडलों के ऋषियों के द्वारा दृष्ट ऋचाएं देवता वाचक होने से सामवेद के इस भाग में एकत्र संकलित की गई हैं। और इस संकलन को पर्व या कांड के नाम से अभिहित करते हैं। जैसे आग्नेय पर्व इस पर्व के अंतर्गत अग्नि विषयक मंत्रों का समवाय उपस्थित किया गया है। इसी प्रकार ऐंद्रपर्व ,पवमान पर्व आरण्यक पर्व है। इनके अतिरिक्त महानाम्नन्यार्चिक नामक खण्ड भी हैं।इस वेद के विभाजन को जटिलता के कारण संपूर्ण संहिता में आरंभ से ही मंत्र संख्या दी गई है। इस वेद की सर्वाधिक प्रचलित शाखा राणानीय है। अन्य प्रसिद्ध शाखाएं कौथुम और जैमिनीय है!
अथर्ववेद–
वेदों में अनन्यतम अथर्ववेद एक महत्व विशेषता से युक्त है। इस जीवन को सुखमय तथा दुःख रहित करने के हेतु जिन साधनों की आवश्यकता होती है, उनकी सिद्धि के लिए अनेक प्रकार के अनुष्ठानों और प्रयोग का विधान इस वेद में है। प्रत्येक पुरोहित के लिए अथर्ववेद का ज्ञान आवश्यक है। क्योंकि शांति ,पौष्टिक आदि कृत्य का विधान इसी वेद में है।राष्ट्र की उन्नति के लिए इस वेद के अंतर्गत बहुत से विधान इसी वेद में हैं। राष्ट्र की उन्नति के लिए इस वेद के अंतर्गत बहुत से विधान आए हैं। इसीलिए राजा के लिए अथर्ववेद विशेष महत्व रखता है। अथर्वाङ्गिरस भी इस वेद का एक नाम है। इससे यह प्रतीत होता है, कि यह वेद अथर्व और अङ्गिरस नामक दो ऋषियों द्वारा दृष्ट मंत्रों का समन्वय है। अथर्ववेद में 20 कांड है जिनमें 730 सूक्त तथा 5977 मंत्र हैं। अथर्ववेद पर ऋग्वेद का स्पष्ट प्रभाव है। इसमें लगभग 1200 मंत्र ऋग्वेद के ही हैं। अथर्ववेद के प्रतिपाद्य विषयों में शांति ,पौष्टिक के साथ-साथ शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए, रोग निवारण के लिए तथा अन्य अनिष्टों से रक्षा के लिए अनेक मंत्र विद्यमान !
अथर्ववेद में विज्ञान–
अथर्ववेद के अंतर्गत यजुर्वेद के सिद्धांत तथा प्रयोग की अनेक पद्धतियां निर्दिष्ट हैं। जिनके अनुशीलन से आयुर्वेद की प्राचीनतम पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है, रोग विशेष का उपचार जैसे ज्वर गण्डमाला यक्ष्मा आदि रोगों के निवारण का उपाय बताया गया है।शल्य चिकित्सा का सूक्ष्म विवेचन अथर्ववेद में उपलब्ध है। जैसे मूत्र कृच्छ आदि रोग होने पर शरशलाका के द्वारा मूत्र का निष्कासन, जलधावन के द्वारा घाव का उपचार आदि अनेकों शल्य चिकित्साओं का वर्णन यहां उपलब्ध है।दैनिक ग्रह कार्यों संस्कारों आदि में प्रयुक्त होने वाले मंत्र इसी वेद से संकलित हैं।इससे स्पष्ट है, कि अथर्ववेद में अनेक विधाओं को प्रधानता मिली है प्रतिदिन के जीवन के लिए उपादेय मंत्रो का संकलन इस वेद में किया गया है। इससे तत्कालीन लोकाचारों तथा लोकविचारों का भी ज्ञान होता है। राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत भूमि सूक्त भी इसी वेद में विद्यमान है!
गौर वैदिक गुरुकुलम
दैनिक दिनचर्या
प्रातः जागरण 4:15 से 5:00
संध्या वंदना 5:00 से 5:30
प्रातः स्मरण तथा योगाभ्यास 5:30 से 6:10
सरस्वती वंदना 6:10 से 6:30
योगाभ्यास 6:30 से 7:00
स्वाध्यय 7:00 से 8:00
अल्पाहार 8:00 से 8:30
वेदाध्ययन 8:30 से 11:30
मध्यान संध्या 11:30 से 12:00
मध्यान भोजन 12:00 से 1:00
विश्राम 1:00 से 2:00
आधुनिक विषय कक्षा 2:00 से 4:45
क्रीड़ा 4:45 से 5:30
स्नानादि 5:30 से 6:00
सायं संध्या 6:00 से 6:30
स्रोतधायण 6:30 से 7:00
आरती 7:00 से 7:30
स्वाध्यय 7:30 से 8:30
रात्रि भोजन 8:30 से 9:00
शयन 9:00 से 10:00
Experience, quality, and results.
Experience. We have been designing websites professional since the early days of the web - before CSS was mainstream, and people still used tables for their website layouts. In the 20+ years that we have been doing this, we have work with and learned from many of the top voices in several industries. To put it simply - there are very few people in the world, let alone the area that can top our years of experience.
Quality At Right Creative, we hold an almost unrealistic standard for quality. We demand excellence in every project we take on, and firmly believe that the quality of our work demonstrates our commitment to these standards.
Results More than anything else, our focus is, and will always be getting results for clients. We don't care how pretty something is - if it is not resulting in the growth or obtaining of goals for our clients, then it is not time or money well spent. Our mission is to turn visitors into paying customers - and every decision that we make is rooted in that mission.
Other distinguishing features Some of the other things that separate Right Creative from other top-rated agencies are: we hand-code all of our websites for maximum results. We don't rely on Wordpress, plugins, templates or themes to accomplish things, and are therefore not locked in to the limits they pose.
List of Documents Requiered at the times of Admission
1. Candidates should submit adhar copy, and father mothers adhar copy is also needed.
2. Candidates passport photograph is also requiered atleast 4 copy.
3. Joint account copy with anyone mother or father.
4. Birth certificate of the candidates .
5. Candidates should have 5th passout marksheet and tc at the time of admission.
6. Candidates who are seeking to get admission in the gurukulam after the entrance exam they have to pay 5000 Rs as security deposit for one time only.
For more details
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Contact - 9811466353 , 7569007845
Email – gaurgurukulamvedapathshala@gmail.com
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